ताजमहल का असली रहस्य क्या है? hidden dark secrets of Taj Mahal
इंडिया के शहर आगरा में मुग़ल साम्राज्य के वास्तुकार [architect] का एक ऐसा साकार मौजूद है, जिसको आज पूरी दुनिया ताजमहल के नाम से पहचानती है। ४२ एकड़ में फैला, दूर से ही चमकता हुआ ये मकबरा जहां अपने अंदर खूबसूरती के बगीचे सजाये हुए है वहीं इसके ऊपर ग़म और उदासी के कई बादल अभी तक मंडरा रहे हैं।
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image credit: pixabay/RichardMc |
करीब ४०० साल पहले बनी यह खूबसूरत इमारत कभी अपने दौर की सबसे बड़ी और सबसे खूबसूरत इमारत हुआ करती थी, और आज भी इसे दुनिया का सातवां अजूबा माना जाता है। इस आलीशान ढाँचे को बनाने के लिए २०,००० मजदूरों ने दिन-रात खून-पसीना बहाया, और वो भी एक या दो सालों तक नहीं बल्कि पूरे २२ साल तक। अगर आज के दौर में इसकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए तो, संगमरमर का ये अनमोल मकबरा हैरतअंगेज तर पे $1 Billion से भी ज्यादा महंगा है। इस इमारत में मुग़ल वास्तुकारों ने अपने हुनर के कई ऐसे निशानिया छोरी थी, जिनकी आज तक दुनिया के शीर्ष इंजीनियरों द्वारा प्रशंसा की जाती है।
इस इमारत को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि जब इसे मुख्य द्वार के पीछे से देखा जाता है, तो यह काफी बड़ा लगता है, लेकिन जैसे ही मुख्य द्वार से आगे की ओर जाया जाता है, ऐसा लगता है कि इसका आकार छोटा होता जा रहा है। दिमाग को चकरा देने वाली ये कोई पहली तरकीब नहीं थी, जो मुग़ल वास्तुकारों ने इस्तेमाल की हो। इसके गिर्द चारों मीनारों को बिल्कुल सीधा खड़ा नहीं किया गया, यह मीनार थोड़ा बाहर की ओर झुकी हुई है, यदि ये मीनारें बिल्कुल सीधी खड़ी की जातीं, तो दूर से देखने पर ये अंदर की ओर झुकी होतीं। इन मीनारों को बाहर की ओर झुकाने का एक और कारण भी था, और वो ये था की अगर कभी कोई खतरनाक भूकंप आए और ये मीनारे गिरे भी तो ये बहार की तरफ गिरे और ताजमहल पर एक आंच भी न आए। आखिर बात क्या थी कि इसे बनाने वाले इस पर एक खरोंच भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।
ताजमहल के कौन से रहस्य थे जिसे करीब ४०० साल पहले छुपाने की कोशिश की गई थी? और जब उस समय कोई कंक्रीट या स्टील नहीं था, तो आखिर यह राजसी मकबरा और उस पर ४० मीटर ऊंचा गुंबद कैसे बना, क्या है इसके पीछे का राज, आखिर ताजमहल का असली रहस्य क्या है, और बहुत कुछ आप इस लेख में जानेंगे...
ताजमहल का निर्माण कब और किसने किया?
यह मामला साल १६०७ में शुरू हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के इस हिस्से में मुगल साम्राज्य का शासन था। इस दिन मुग़ल शहंशाह का सबसे छोटा बेटा शहाब-उद-दीन मुहम्मद खुर्रम १५ साल का हो चुका था और उसी के खुशी में आगरा के किले में एक आलीशान समारोह रखा गया था। शहाब-उद-दीन मुगल शहंशाह को सबसे ज्यादा अजिस था, इसी बझा से इसके हर जन्म दिन पर उन्हें हीरे और सोने से तोला जाता था, यानी जितना वजन सहजादे खुर्रम का होता था उतनाही खजाना उसके नाम कर दिया जाता था। लेकिन इस जन्मदिन पर कुछ और खास होने वाला था, मुगल बादशाह ने शहजादे खुर्रम की शादी अपने एक बकिल की बेटी से कर दी थी, जिसे आज मुमताज़ महल के नाम से जाना जाता है। मुमताज़ और खुर्रम को पहले दिन से ही एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत हो चुकी थी, उस वक्त ये किसी को भी मालूम नहीं था की इस मोहब्बत का बोलबाला हमेशा के लिए रहने वाला है।
अगले १० सालों तक शहजादे ने कई जंग लड़ी और उसमें भरपूर कामयाबी भी हासिल की, इसी वजह से शहंशाह ने खुश होकर उन्हें शाहजहाँ की उपाधि से विभूषित किया, जिसका मतलब है दुनिया का बादशाह। शाहजहाँ की ६ बीवियां थी जो आगरा किले के हरम में रहती थीं, इन ६ में शाहजहाँ सबसे ज्यादा मुमताज़ से मोहब्बत करता था और इसलिए उनका ज़्यादातर समय मुमताज महल के साथ ही गुजरता था। वक्त तेजी से गुजरता जा रहा था, और ४ सालों के बाद यानि १६२१ में मुग़ल शहंशाह अचानक चल बसे। शाहजहाँ जो पहले से ही मुगल साम्राज्य में बहुत प्रसिद्ध हो चुका था और जो बादशाह का प्रिय पुत्र भी था, १६२८ में यानी कि बाप के मरने के ७ साल बाद उसने शहंशाह की गद्दी संभाल ली, पूरी मुगल सल्तनत अपने नए शहंशाह से बहुत खुश थी।
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ये वो समय था जब मुगल साम्राज्य अपने चरम पर था, यानी पूरे भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान के कई हिस्सों पर भी मुगल सल्तनत का शासन था। सारे फैसले शाहजहाँ करता था जबकि मुमताज़ महल पीछे रहकर सुझाव दिया करता था, लेकिन किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि ये खुशियां अब जल्द ही मातम में बदलने वाली है। गद्दी संभाले अभी एक ही साल गुजरा था के एक बार फिर मुग़ल साम्राज्य को दुश्मनों का सामना करना पड़ा, अगले दो साल जंग चलता रहा और शाहजहाँ को इस जंग में भी भरपुर कामयाबी नसीब हुई। लेकिन शाहजहाँ इस कामयाबी का जश्न मनाते कि उसकी शुरुआत एक दुखद खबर से हुई। मुमताज महल, जो शाहजहाँ के चौथे बच्चे को जन्म दे रही थी, उसकी हालत बिगड़ गई और १७ जून १६३१ को वह न चाहते हुए भी इस दुनिया से चल बसी। मुमताज़ महल ने मरने से पहले एक आखिरी ख्वाहिश की थी, वो चाहती थी उनकी कब्र दुनिया के सबसे खूबसूरत मख्बरे में बनाई जाये। इस काम और मुमताज महल की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए, शाहजहाँ ने अपनी सारी दौलत और अपना पूरा जीवन निवेश करने का इरादा किया।
मुमताज़ के गुजरने के ६ महीने बाद यानी १६३२ में ही ताजमहल के निर्माण का काम शुरू कर दिया गया। करीब २०,००० से भी ज्यादा मजदूर, पत्थर-तराशों और कारीगरों को पूरी सल्तनत से इकट्ठा किया गया। शाहजहाँ के आदेश पर सेनाओं को आगरा बुलाया गया, मुमताज़ का समाधि यमुना नदी के करीब होने के कारण इस जगह पर दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत बनाना एक काफी मुश्किल काम था। नदी के किनारे की जमीन बहुत नरम होती है और अगर यहां खुदाई का काम किया गया तो पानी का बहाव ताजमहल की नींव को भी नुकसान पहुंचा सकता था। इस मसले से निपटने के लिए मुगल इंजीनियर्स ने यहां जमीन के अंदर कई कुआं खुदवा ना शुरू कर दिया, मजदूर ये कुआं तब तक खोदते रहते जब तक शुष्क जमीन नजर नहीं आ जाता था। इन कुओं को महीन रेत,सिल्की मिट्टी और बजरी, लाल बलुआ पत्थर से भरा गया फिर उसके ऊपर पत्थरों के बड़े-बड़े कॉलम्स खड़े किए गए इस सारे काम को अंजाम देने के लिए मजदूरों के साथ-साथ हाथियों के भी एक बड़ी फौज को इस्तेमाल किया गया, मुगल इंजीनियर की ये योजना काम कर चुकी थी, और अब एक ऐसी मजबूत फाउंडेशन तैयार थी जो नरम जमीन पर भी फौलाद बनकर खड़ी थी। नींव के बाद अब बारी थी एक ऐसी इमारत डिजाइन की जो आज से पहले किसी ने भी ना देखा हो, एक ऐसा डिजाइन जो पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। ताजमहल के डिजाइन का आईडिया शाहजहां ने अपने बाप दादा के मकबरों से लिया था, बाप के मकबरे से मीनारों का आईडिया लिया गया, दादा के मकबरे से बिल्डिंग कोर का आईडिया लिया और अपने चाचा के मकबरे से गुंबद का आईडिया लिया और जब इन सब को मिलाया गया तो एक शानदार और आलीशान डिजाइन उभर कर सामने आया। इमारत का ढांचा बनाने के लिए मौके पर ही लाखों नहीं बल्कि करोड़ों ईंटें भी बनाई गईं, ये सब इतना आसान नहीं था और इसमें बहुत सारा पैसा भी खर्च हो रहा था, शाही खजाना दिन-ब-दिन खाली होता जा रहा था। लेकिन शाहजहाँ को किसी बात की परवाह नहीं थी, बस उसे ये काम हर हाल में पूरा करना था।
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कहा जाता है कि ताजमहल के निर्माण में इतने लोगों को लगाया गया था, जिससे आसपास के इलाकों में खाना-पीना खत्म हो गया था। २०,००० मजदूरों और कारीगरों की मांग को पूरा करने के लिए शाहजहाँ आसपास के तमाम इलाकों से अनाज आगरा मंगा लिया था। कई सालों की मेहनत के बाद इमारत का ढांचा बनकर तैयार हो चुका था और अब बारी थी इसे संगमरमर से सजाने की, ये संगमरमर आगरा से ४०० किलोमीटर दूर राजस्थान से मंगाया जाना था क्योंकि यहां का मकराना मार्बल आज तक दुनिया का बेहतरीन मार्बल माना जाता है। शाहजहां ने पूरे मकराना मार्बल को ताजमहल के लिए आरक्षित कर रखा था, यानी ताजमहल की मांग पूरी होने तक किसी को भी इस मार्बल को खरीदने की इजाजत नहीं थी, एक हजार हाथियों की मदद से हजारों टन वजनी मार्बल राजस्थान से आगरा मंगाया गया। ताजमहल का खूबसूरत गुंबद इतना बड़ा है कि इसे आंखों से देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है। आजकल इस प्रकार के गुम्बद को स्टील के ढांचे पर बहुत आसानी से बनाया जा सकता है, लेकिन ४०० साल पहले उनके पास ४० मीटर ऊंचे गुंबद को बनाने के लिए बस पत्थरों का ही सहारा था। आज के इंजीनियर भी इस गुंबद को बनाने में मुगल इंजीनियर द्वारा गणना किए गए तनाव की सराहना करते हैं। ताजमहल की साज-सज्जा के लिए इसे पिएत्रा ड्यूरा या परचिंकारी से सजाया जाना था। पिएत्रा ड्यूरा एक कला रूप है जिसमें संगमरमर के अंदर कीमती पत्थर उकेरा जाता है। कीमती पत्थर के आकार के अनुसार संगमरमर को सावधानीपूर्वक और बारीकी से उकेरा जाता है और पत्थर को गोंद की मदद से उसमें चिपका दिया जाता है। ताजमहल पर इस्तेमाल होने वाला गोंद कोई आम गोंद नहीं था, कई शोध और परीक्षण के बाद मालूम पड़ा कि ये गोंद गुड़, पेड़ के गोंद, चीनी के गोले और चीनी के बुलबुले, कुछ चिपचिपे लिंटल्स, जिंक ऑक्साइड और कई अन्य चीजों से बना था, और वही गोंद आज भी ताजमहल के नवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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ताजमहल की खास बातों में एक बात ये भी है, कि ये दिन में ४ मर्तबा अपना रंग बदलता है। सुबह के समय सूरज निकलने से पहले ये बिल्कुल ब्लैक शेड देता है, सूरज निकलने के बाद ये लाइट येलो और पिंक शेड देता है, जबकि दोपहर के वक्त ताजमहल के खूबसूरती का नया रुख देखने को मिलता है, नीले आसमान पर जैसे सफेद मोती चमक रहा हो, और शाम के वक्त ये पूरी इमारत गोल्डन कलर की दिखाई देती है। पूरे २२ सालों के बाद यानी कि सन १६५४ में ताजमहल का निर्माण का काम मुकम्मल कर लिया गया। शाहजहां अपने बेगम की याद में दुनिया का सबसे खूबसूरत मकबरा बनाने में कामयाब हो चुका था। शाहजहां ने इस इमारत का नाम अपने पसंदीदा बीवी के नाम पर ही रखा, मुमताज़ महल से इस मकबरे का नाम ताजमहल रख दिया गया। शाहजहाँ की ये महँगी परियोजना पूरा तो हो गया, लेकिन इसने मुगल सल्तनत को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया। ४ साल बाद यानी १६५८ में शाहजहाँ और मुमताज के अपने ही बेटे ने तख्तापलट कर दिया और खुद मुग़ल साम्राज्य का बादशाह बन गया। पिछले ३० सालों से राज कर रहे शाहजहां को आगरा के किले में ही कैद कर दिया गया था, शाहजहाँ को एक ही सुविधा दी गई थी कि वह ताजमहल को उस कमरे की खिड़की से देख सकता था जिसमें वह बंद था। ८ साल की कैद के बाद शाहजहाँ ७४ साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गई, शाहजहां का अब मुमताज से दोबारा मिलने का वक्त आ चुका था और उनको ताजमहल में ही दफन कर दिया गया।
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